Thursday, August 15, 2019

मध्य प्रदेश का गठन

नमस्कार दोस्तों आज हम मध्य प्रदेश का गठन कैसे हुआ इस बात पर चर्चा करेंगे हम सभी जानते हैं कि आजादी से पूर्व हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था कितने वीर सिपाहियों, क्रांतिकारियों, देशभक्तों, समाज सेवकों और नेताओं के कठिन प्रयासो से हमें आजादी मिली थी
         आजादी से पहले या बाद  मध्य प्रदेश की संरचना कैसी थी आज हम इस का अध्ययन करेंगे। वर्ष 1947 आजादी के समय भारत की प्रशासनिक इकाइयां दो भागों में विभाजित थी।
(क) ब्रिटिश प्रांत:-  यह  वे प्रांत थे जो आजादी के बाद भी अंग्रेजों   के अधीन थे क्योंकि देश आजाद होनेे के बाद भी कई वर्षों तक हमारेे देश के कई प्रांतों पर अंग्रेजों का राज था।
(ख) देसी रियासतें ( प्रांत):-   यह वे प्रांत थे जिनका शासन स्वदेशी राजा के अधिकार में था। किंतुु उनका प्रशासनिक देखरेख व  निर्णय अभी भी अंग्रेजों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे थे।अंग्रेज वहांं के राजा को जैसा करने के लिए बोलते थे  राजा को अपने राज्य में वैसा ही करना पड़ता था ।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (Indian Independence Act,  1947):-   यह अधिनियम ब्रिटिश पार्लिमेंट(United Kingdom)  द्वारा पारित वह कानून है जिसके अनुसार ब्रिटिश  द्वारा शासित भारत का दो भागों भारत और पाकिस्तान में विभाजन किया गया। यह अधिनियम 18 जुलाई 1947 को स्वीकार किया गया । और 15 अगस्त1947 को भारत का बंटवारा भारत और पाकिस्तान के रूप में हो जाता है। ब्रिटिश सरकार द्वारा सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में दो आयोगों का  गठन किया गया । जिनका कार्य विभाजन की देखरेेख करना और भारत और पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओंं का निर्धारण करना था।
सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता के कारण ही भारत और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय रेखा को रेडक्लिफ लाइन के नाम से जाना जाता है। स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 565 छोटी बड़ी रियासतें थी।माउंटबेटन के प्रस्ताव के अनुसार रियासतें या तो भारत में शामिल हो सकती हैं या पाकिस्तान में शामिल हो सकती है या स्वतंत्र रह सकती है। भारत के तत्कालीन तथा प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देसी  रियासत को भारत के साथ मिलाने के लिए कठोर नीति अपनाई और 15 अगस्त 1947 तक कुछ अपवाद को  छोड़कर (जम्मू-कश्मीर ,जूनागढ़ और हैदराबाद) सभी रियासतों भारत में  विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके शामिल हो चुकी थी ।तत्कालीन भारत में गोवा राज्य पर  पुर्तगालियों तथा  पांडिचेरी पर  फ्रांसीसीयो का अधिकार था।
            15 अगस्त 1947 को भारत के  आजाद होने के बाद सभी देशी रियासत मिलकर एक भारतीय राष्ट्रीय संघ का निर्माण करती है।
                तत्पश्चात देश को एक दृढ़ नियम कानून व्यवस्था की जरूरत होती है। जिसके लिए एक संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 को किया जाता है संविधान सभा में कुल सदस्यों की संख्या 389 निश्चित की गई थी जिसमें 292 ब्रिटिश प्रांतों  के प्रतिनिधि,4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देसी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
            संविधान सभा का चुनाव हुआ जिसमें 389 सदस्यों में से 296 सदस्यों का चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस को 208 सीटें, मुस्लिम लीग को 73 सीटें तथा 15 अन्य दलों के उम्मीदवारों का निर्वाचन होता है।
           9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली में होती है । 11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई सदस्य चुना जाता है। मुस्लिम लीग ने संविधान सभा की बैठक का पूर्ण बहिष्कार किया और एक अलग देश पाकिस्तान के लिए बिल्कुल अलग संविधान सभा की मांग की। 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान के उद्देश्य प्रस्ताव के साथ संविधान सभा की कार्यवाही प्रारंभ हुई। 22 जनवरी 1947 को संविधान निर्माण के उद्देश्य प्रस्ताव की मंजूरी के बाद संविधान निर्माण के लिए अनेक समिति बनी, जिसमें प्रारूप समिति प्रमुख थी। इसमें कुल 7 सदस्य थे ,डॉ. भीमराव अंबेडकर समिति के अध्यक्ष थे अन्य सदस्य इस प्रकार हैं
1. एन गोपालस्वामी आयंगर
2. अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
3. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
4. सैयद मोहम्मद सादुल्ला
5. एन माधवराव
6. डी पी खेतान
7. डॉ भीमराव अंबेडकर( अध्यक्ष)
                         प्रारूप समिति  संविधान के प्रारूप पर चर्चा करके तथा विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी 1948 को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट सौंप देती है। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान को पारित किया गया इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में 2 वर्ष 11 महीने 17 दिन लगे तथा इस कार्य में  लगभग 6.4 करोड़ों रुपए खर्च हुए। 26 जनवरी 1950 से संविधान को देश में लागू किया गया। इसी कारण 26 जनवरी को हर साल गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। साथ ही 24 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना जाता है।
                        वर्ष 1950 के समय संविधान द्वारा भारतीय संघ के  राज्यों को प्रशासन प्रणाली के आधार पर चार भागों में बांट दिया जाता है उस समय कुल 29 राज्य थे।  तथा उनके  4 भाग इस प्रकार थे।
 भाग (क):-  इन राज्यों में  ब्रिटिश कालीन गवर्नर का शासन रहता था।
 भाग (ख):- इसमें 9 राज्य शामिल थे  इनका प्रशासन यहां का विधान मंडल व शाही शासन देखता था।
 भाग (ग) :- इनमें ब्रिटिश कालीन भारत के मुख्य आयुक्तोंं का शासन हुआ करता था।
भाग (घ) :- इसमें केंद्रीकृत शासन हुआ करता था जिसमें एक राज्य अंडमान निकोबार को शामिल किया गया था।
                         1947 में भारत पाकिस्तान के बंटवारे के पश्चात और देसी रियासतों के विलय के बाद हमारे देश भारत का शासन व प्रशासन सुचारू रूप से नहीं चल रहा था। देश में अजीब सी हलचल  हो रही थी। कोई भी प्रशासनिक इकाई स्थाई रूप से कार्यरत नहीं थी राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानो इस संघ के राज्यों का गठन अस्थाई रूप से किया गया हो।
                          तत्पश्चात विभिन्न राज्यों में मुख्य तौर पर दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग उठाई गई। उनका कहना था कि मलयालम भाषी क्षेत्र को मिलाकर एक राज्य, तेलुगु भाषी क्षेत्र को मिलाकर एक राज्य ,इसी प्रकार अन्य राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन हो।
                                भारत सरकार ने जून 1948 को राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक धर आयोग का गठन किया। राज्यों के पुनर्गठन के लिए यह प्रथम आयोग था इसका उद्देश्य राज्यों का भाषा आधार पर पुनर्गठन करना था इसके अध्यक्ष एस के धर थे ।      धर आयोग ने अपनी रिपोर्ट दिसंबर 1948 में पेश की। और रिपोर्ट में कहा कि राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर ना होकर प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि के आधार पर होना चाहिए। इस रिपोर्ट का संपूर्ण दक्षिण भारत में विरोध होता है। और आंदोलन होने लगते हैं ।इन आंदोलन से प्रभावित होकर भारत सरकार एक और समिति का निर्माण करती है जिसे जे.बी.पी समिति कहते हैं। यह समिति कांग्रेस द्वारा दिसंबर 1948 में बनााई जाती है इसके सदस्य जवाहरलाल नेहरू , बल्लभ भाई पटेल और पट्टाभी सीतारामय्या थे। इन्हींं के नाम पर इस समिति का नाम रखा गया था। इस समिति का उद्देश्यय भी राज्यों का भाषाई आधार पर पुनर्गठन हो अथवा न  हो, इसकी जांच करना था। इस समिति ने अप्रैल 1949 को अपनी रिपोर्ट पेश की, और इसने भी भाषाई आधार पर राज्यों  के पुनर्गठन के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। जब दक्षिण भारत के लोगों को यह ज्ञात हुआ कि  समिति ने उनकी राज्यों के भाषाई आधार पर पुनर्गठन की मांग को अस्वीकार कर दिया है। तो एक क्रांति ने जन्म लिया और देश में आंदोलन होने लगे। दक्षिण भारत के जो तेलुगू भाषी लोग थे उनमें एक कांग्रेसी कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामुजु  ने आमरण अनशन किया और लगभग 56 दिनों की भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्युु हो जाती है। उनकी मृत्यु के कारण दक्षिण भारत के तेलुगु भाषी लोग और ज्यादा हिंसा पर उतर आतेे हैं। मजबूर होकर भारत सरकार Oct 1953 को भाषा के आधार पर एक राज्य आंध्र प्रदेश ( तेलुगू भाषी क्षेत्र ) का गठन कर देती है। वर्ष 1953 के बाद भाषा के आधार पर बने राज्य के गठन के पश्चात अन्य भाषाओंं के लोगों में भी अपने राज्य के गठन की मांग  बढ़ जाती हैं। इस स्थिति को समझते हुए,  दिसंबर 1953 में फजल अली आयोग का गठन किया। इसके अध्यक्ष फजल अली थे ।तथा अन्य दो सदस्य हृदयनाथ कुंजरू और के.एम. पणिक्कर थे।  इस आयोग ने वर्ष 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की और भाषाा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन की मांग को स्वीकार किया। और सरकार को सलाह दी कि राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त कर  भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हो।  भारत सरकार ने भी कुछ शर्तों में कुुुछ बदलाव के साथ  समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया। परिणाम स्वरूप 01 Nov 1956 को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन हुआ।
                         इन 14 राज्यों में एक  राज्य हमारा मध्यप्रदेश भी था इसका गठन भी 01 नवंबर 1956 को हुआ था। इसलिए प्रतिवर्ष 1 नवंबर को मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस मनाया जाता है।

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