कैसा अजीब सा जमाना हो गया है।
यहाँ इन्सान इन्सान को भूल गया है ।
करते तो है बहुत बड़ी बड़ी बात ।
लेकिन नही करते है एक भी मुलाकात।
सुबह उठ कर फ़ेसबुक,वाट्सआप पर करते हैं राम राम ।
बाकी दिन भर करते है गालियों से काम ।
कर लेते हैं हर किसी अजनबी से दोस्ती ।
अब रिश्तों मे नही रही पहले जैसी मौज-मस्ती।
यहाँ उनसे बात करने के इंतज़ार में पूरी रात गुजर जाती है।
फिर भी उन्हे अपनो की याद नही आती है।
ना जाने कौन सी दुनिया मे ये लोग खोये रहते हैं।
अपनो को भूल अन्जानो को ढूंढते रहते हैं।
घर में होकर भी घर में ना होने का एहसास दिलाते है।
ना जाने आज के स्कूलो मे क्या सिखाते है।
बना कर बडा ग्रुप फेसबुक पर अपने दोस्त गिनाते है।
और जरुरत आने पर कोई भी दोस्त काम नहीं आते हैं।
क्यों बदलते जा रहे हैं हम इस कदर ।
क्या हमे नहीं है अपनो की ही कदर।
बनाया था किसी ने हमें मदद करने के लिए।
लेकिन हो गये हैं दूर हम अपनो के लिए।
यहाँ पर ज्ञान की बात तो सब करते हैं ।
लेकिन बात मानने से ना जाने क्यों डरते हैं ।
किसी से कुछ प्रश्न पूँछना गुनाह हो जाता है ।
लोगों को लगता है जैसे उन्हें ही सब कुछ आता है।
आजकल लोगों की दुनिया सीमित हो गई है ।
आजकल लोगों की दुनिया सीमित हो गई है ।
और लोग कहते हैं कि दुनिया मुट्ठी में हो गई है।
ना करके मदद दूसरों की वो खुद को बडा साहब मानते हैं।
रोते हैं ऐसे लोग जब इन्हें इन्हीं जैसे लोग मिलते हैं।
क्या क्या सिखा रहे हैं हम अपने आने वाले कल को।
ऐसे ही सुखा रहे हैं हम अपने ही जीवन के कमल को।
देख कर दूसरे की तरक्की लोग यहां जलते हैं ।
ये लोग दूर नहीं अपने आस पास ही कहीं मिलते हैं।
करके भरोसा अपनो पर लोग आगे बढा करते है।
सोचा नहीं था कि अपने ही अपनो की टांग खींचा करते हैं।
बन कर वो हमारे हमदर्द हमारा दर्द जान लेते हैं।
मौका मिलते ही हमारे दर्द का मजा लेते हैं।
न जाने ये कैसा जमाना आ गया है।
यहां इन्सान इंसानियत को ही भूल गया है ।
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