Monday, July 8, 2019

असफलताओं से सफलता की ओर


            असफलताओं से सफलता की ओर
                      
                
आज मैं बहुत डरा हुआ था क्यो कि आज मेरा 10वी कक्षा का परिक्षा  परिणाम आने वाला था मैने डर की वजह से अपना रोल नम्बर  भी किसी को नही दिया था सभी लोग मेरे रोल नम्बर के पीछे पड़े रहते थे कि अपना रोल नम्बर दे दो।लेकिन मैने अपना रोल नम्बर किसी को नही दिया था।आज जब परिणाम आने वाला था तो मैं अपने घर से काफ़ी दूर एक मैदान मे बैठा हुआ था। और सोच रहा था कि अगर मै 10वी कक्षा मे अनुत्तीर्ण हो गया तो मैं क्या करूँगा। मैं अपने घर वालो से नज़रे कैसे मिला पाऊँगा। और यही सोच सोच कर मै मन ही मन में एक अजीब सी घुटन मह्सूस कर रहा था।  मेरे मन में बहुत ही अजीब से खयाल आ रहे थे मैं कुछ सोच ही रहा था। कि पीछे कुछ दूर से आवाज आती है "ओये  अनू , तू वहां क्या कर रहा है " चिल्लाते हुए मेरा एक दोस्त मेरे पास आता है। और कहता है कि आज तो तेरा परिक्षा परिणाम आने वाला था। मै उसकी बातो को नजर अन्दाज करके अपने घर की ओर चल देता हूँ। मैं घर पहुंचा ही था कि पापा मेरे ऊपर चिल्लाना शुरू कर देते हैं और तेज आवाज मे चिल्लाते हुए कहते हैं कि देखो "ये आ रहे हैं हमारे लाड शाहब जो 10वी मे अनुत्तीर्ण हो गये हैं। " और कहते हैं कि तुम्हारे कक्षा अध्यापक का फोन आया था बोल रहे थे कि अनू अनुत्तीर्ण हो गया है।
                                  पापा बस चिल्लाते जा रहे थे,माँ भी पापा के साथ सुर में सुर मिला रही थी। वो भी बस यही बोल रही थी कि क्या कमी रह गई थी। हमारे पढाने मे, कि तू अनुत्तीर्ण हो गया।तूने  हम लोगों की  पूरे कॉलोनी  में  नाक कटवा दी। मै माँ और पापा की बातों को चुप चाप सुन रहा था। थोड़ी देर बाद जब सब शांत हो जाते हैं। तो मैं चुप चाप वहा से अपने कमरे में चला जाता हूं। और यही सोचता रहता हूँ। कि आखिर क्यो मैं ही अनुत्तीर्ण रहा और लोग कैसे उत्तीर्ण हो गये। मेरे दिमाग मे एक अजीब सी उथल पुथल चल रही थी।
तभी मेरी बड़ी बहन(आरती) आती हैं,और पूँछती है कि इतना उदास क्यो है। 10वी मे ही तो अनुत्तीर्ण हुआ है ना, जिंदगी में तो नहीं।. तू आज से ही दोबारा 10वी की पढाई शुरु कर ।और अगर कोई समस्या आती है पढाई में, तो मुझे सम्पर्क करना ।अपनी बडी बहन(आरती) की ये बाते ,मेरे लिए अम्रत की तरह काम कर रही थी। जो मुझे पुनः एक बार फिर से आगे बढ़ने की ऊर्जा दे रही थी।और मैने फिर से एक बार अपनी पढाई की शुरुआत कर दी। लेकिन शायद मेरी किस्मत ही खराब थी मैं इस बार फिर से 10वी मे अनुत्तीर्ण हो गया। मेरे घर वाले मुझ पर जोर जोर से चिल्ला रहे थे। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था,कि मैं क्या करू।. मेरी बड़ी बहन(आरती) मेरे पास आती हैं। और मेरे अनुत्तीर्ण होने का कारण पूँछती हैं मेरा यही जवाब रहता है कि मैने अपनी तरफ़ से पढाई में कोई कमी नही की, लेकिन फिर भी मैं अनुत्तीर्ण हो गया।अब मेरा पढाई में बिल्कुल मन नही है। मै नौकरी करना चाहता हूँ। मेरे मुह से नौकरी की बात सुन कर मेरी बहन(आरती) जोर जोर से हंसने लगती है। और कहती हैं कि तू नौकरी करेगा,वो भी इतना कम उम्र मे, और बहन बोलती है कि अगर तुझे नौकरी ही करनी है, तो पहले अपनी पढाई पूरी कर ले और फिर नौकरी कर लेना। बड़ी बहन के समझाने पर,मै उसकी बात मान कर ,एक बार फिर से पढाई में मन लगाने और 10वी कक्षा उत्तीर्ण के लिए मेहनत करने लगा। मैंने अपनी बड़ी बहन से वादा कर लिया था कि इस  बार मैं दसवीं कक्षा  उत्तीर्ण करके  जरूर दिखाऊंगा। लेकिन मेरी किस्मत ही खराब थी,उसे तो मेरा अनुत्तीर्ण होना ही मंजूर था। और मैं इस बार फिर से  दसवीं कक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था। कि मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊं और अपनी बहन और अपने मां बाप को क्या मुंह  दिखाऊँ। मैं बहुत ज्यादा हताश और परेशान था।क्योंकि मेरा मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं था लेकिन बड़ी बहन के कहने पर मैंने दसवीं कक्षा  को दोबारा से पढ़ने का सोचा। मैं अपनी बड़ी बहन से वादा कर चुका था।मेरी बड़ी बहन ने मुझे हर बार आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। लेकिन मैं कभी भी  उनके  विश्वास पर खरा नहीं उतर सका। मैं अपनी बड़ी बहन को  अपनी सबसे  बड़ी शक्ति मानता हूं ।इस बार फिर से मैं अपनी बहन को  किए हुए वादे को नहीं निभा पाया ।परिणाम वही का वही रहा, अर्थात मैं फिर से अनुत्तीर्ण हो गया ।जैसे ही  मैं घर  घर पहुंचता हूं मेरे ऊपर गुस्से की बारिश ऐसे होती है। जैसे किसी आतंकवादी को देख कर उन पर गोलियां चलाना शुरू कर देते हैं।मेरे मम्मी पापा दोनों लोग  मेरे अनुत्तीर्ण होने पर बहुत  बहुत अधिक गुस्सा होते हैं।मेरी दीदी भी मेरे अनुत्तीर्ण होने पर  गुस्से में थी।वह समझ नहीं पा रही थी, कि ऐसा क्या है। कि मैं कैसे  हर बार दसवीं कक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता हूँ। आखिरकार घर वालों के  गुस्से की वजह से , मैं पढ़ाई छोड़ देता हूं।और  घर से दूर एक नए शहर(भोपाल) में चला जाता हूं। और नौकरी के लिए इधर उधर भटकने लगता हूं।चूँकि  मेरे पास कोई भी डिग्री या फिर किसी तरीके की कोई योग्यता नहीं थी, की कोई मुझे नौकरी दे। मैं कई जगह  साक्षात्कार देने गया,लेकिन मुझे कहीं पर भी नौकरी नहीं मिली ।एक  दिन थक हार कर  एक दुकान पर बैठकर अखबार पढ़ रहा था। तभी अखबार में एक इश्तिहार देखता हूँ। "जहां पर लिखा होता है की एक न्यूज़ एजेंसी में  छोटे लेख लिखने के लिए एक लेखक की जगह खाली है "
                                     मैं न्यूज़ एजेंसी में एक लेखक के तौर पर साक्षात्कार के लिए चला जाता हूं। मेरे पास ना तो कोई डिग्री थी और ना ही कोई अतिरिक्त योग्यता,किंतु फिर भी मेरा साक्षात्कार बहुत अच्छा जाता है।और मुझे एजेंसी में कुछ छोटे लेख लिखने के लिए नौकरी मिल जाती है। धीरे धीरे मैं छोटे-छोटे लेख अखबार में लिखने लगता हूँ। मेरे छोटे-छोटे लेख लोगों को बहुत पसंद आने लगते हैं। मेरे  द्वारा लिखे हुए लेखों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ने लगती है। और अब मैं बड़े-बड़े लेख लिखने लगता हूँ।  लोग मेरे लेखों को बहुत पसंद करने लगे। एक दिन मुझे  मेरे ऑफिस में एक लड़की मिलती है।चूँकि मैं लड़कियों से बहुत कम बात करता था। इसलिए शायद मैं उस लड़की को नहीं जानता था लेकिन वह लड़की मेरे बारे में सब कुछ जानती थी।वह आते ही  मुझसे कहती है "बधाई हो अनिरुद्ध, क्या तुम्हें पता है कि आज तुम्हारा लेख सबसे ज्यादा  बार पढ़ा गया लेख है"। क्यों ना तुम अपनी एक किताब लिखो। लड़की की बातें मेरे दिमाग में घर करती जा रही थी।और अगले दिन से मैं अपनी एक किताब लिखना शुरू कर  देता हूं और वह किताब छपने के बाद, बाजार में आ जाती है। मेरी किताब बहुत जोर से मांग में आ जाती है। और मुझे मेरी किताब के लिए "बेस्ट बुक ऑफ द ईयर" का अवार्ड भी मिलता है 
एक दिन जब मैं वापस अपने घर आता हूं। तो जैसे ही दरवाजा खटखटाता हूं। मेरी मां दरवाजा खोलती हैं।और मुझे सामने देख, गले लगा कर रोने लगती है।और कहती हैं ,इतने दिन से कहां था।क्या तुझे हमारी बिल्कुल भी याद नहीं आई। मां के गले लगे हुए मां की बात सुनकर मुझे भी रोना आ जाता है।और रोते रोते मैं मां से पूछता हूं। कि पापा जी कहां है। मां  कमरे की ओर इशारा करते हुए बताती है। मैं कमरे की ओर चल देता हूं कमरे में बैठे हुए मेरे पापा चुपचाप एक किताब पढ़ रहे होते हैं।पास जा कर देखता हूं, तो क्या देखता हूं।कि मेरे पापा मेरे द्वारा लिखी हुई किताब असफलताओं से सफलता की ओर पढ़ रहे हैं। पापा को मेरे द्वारा लिखी हुई किताब को पढ़ते हुए देख बहुत खुशी होती है और मैं पापा के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेता हूं। मेरे पापा मेरे गले लग कर जोर से रोने लगते है और अपने द्वारा  किए गए गुस्से के लिए माफी मांगते हैं और कहते हैं।कि  मुझे माफ कर दो बेटा मैंने तुम पर बहुत गुस्सा किया। पापा की यह बात सुनकर मुझे रोना आ जाता है।और मैं पापा के पैर पकड़कर पापा  का शुक्रगुजार होने की बात करता हूं। और कहता हूं।कि पापा अगर आप सब लोग मेरे ऊपर इस तरीके से गुस्सा नहीं हुए होते और आप इस तरीके से मुझ पर चिल्लाए नहीं होते।  तो शायद मैं इस मुकाम पर नहीं होता। मैंने अपनी इस किताब में सिर्फ और सिर्फ वही लिखा जो मेरे साथ हुआ है ।अर्थात  आजकल के मां बाप अपने बच्चों पर पढ़ाई के लिए किस तरह से अपना गुस्सा निकालते हैं और उनकी मजबूरी को समझे बिना उन पर अपना निर्णय थोप देते है। और उनके उतीर्ण और अनुत्तीर्ण होने को अपने मान-सम्मान से जोड़ लेते हैं। मेरी यह किताब सिर्फ और सिर्फ उन मां-बाप को समर्पित है। जो अपने बच्चों को ना पहचान कर सिर्फ और सिर्फ झूठे सम्मान की खातिर  गलत तरीके से अपने बच्चो को प्रताड़ित करते हैं। जिस कारण बच्चे गलत रास्ते पर निकल पड़ते हैं।
                           मेरी यह बातें सुनकर पापा फूट-फूट कर रोते हैं और वादा करते हैं कि मैं कभी किसी को भी यह सलाह कभी नहीं दूंगा कि वह  अपने सम्मान के लिए बच्चे के उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण होने पर उन्हें गुस्से में प्रताड़ित करें।

        आज मैं एक  सफल लेखक बन चुका हूं मेरा पूरे देश विदेश में नाम है।लोग मुझे बहुत अच्छे से पहचानते हैं। आज जब भी मैं अपने अतीत को देखता हूं।तो ऐसा लगता है कि जैसे मैं असफलताओं की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते, एक सफलता के शिखर पर बैठा हूं। और इसीलिए मेरी जो पहली किताब थी जिसके लिए मुझे बेस्ट बुक ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला था का नाम भी असफलताओं से सफलता की ओर रखता हूं।







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